गुरुवार, 13 जून को सोशलिस्ट इक्वालिटी पार्टी और वर्ल्ड सोशलिस्ट वेब साइट के अंतरराष्ट्रीय संपादकीय बोर्ड की ओर से यह चिट्ठी वॉशिंगटन डीसी में यूक्रेन के राजदूत ओक्साना मारकारोवा को सौंपी जाएगी।
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नेल्ली जनसंहार में भारत की मौजूदा सत्तारूढ़ हिंदू बर्चवस्ववादी बीजेपी ने बड़ी भूमिका निभाई थी. बांग्लादेश से आए बेहद ग़रीब विस्थापित शरणार्थियों के ख़िलाफ़ "अवैध विदेशी" के नाम पर बड़े पैमाने पर सामप्रदायिक भड़काऊ अभियान के कारण यह जनसंहार हुआ था.
Perspective
पिछले हफ़्ते दिल्ली और इस्लामाबाद में हुए धमाकों के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ा
इस्लामाबाद के केंद्र में 11 नवंबर को हुए आत्मघाती धमाके के लिए पाकिस्तान ने भारत को ज़िम्मेदार ठहराया है, जिसमें 12 लोग मारे गए जबकि दर्जनों घायल हुए हैं।
अधिकांश भारतीय निर्यातों पर ट्रंप प्रशासन की ओर से थोपे गए 50 प्रतिशत टैरिफ़ ने महज तीन महीनों के अंदर ही तमाम उद्योगों में विनाशकारी रूप से नौकरियों पर गाज़ गिरा दी है।
एक सहकर्मी वर्कर ने कहा, "चाहे हमें कष्ट हो, चाहे घायल हों या विजयकुमार की तरह मशीन में फंस कर मर ही क्यों न जाएं- उनको इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। वो बस चाहते हैं कि हम ऐसे ही मरते रहें ताकि वे पैसा बना सकें।"
इलाक़े के लिए भारतीय केंद्र सरकार के दमनकारी क़ानूनों का विरोध कर रहे निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर 24 सितंबर को सुरक्षा बलों ने फ़ायरिंग की जिसमें चार लोग मारे गए और 150 से अधिक लोग घायल हुए।
तमिलानाडु के मिंजुर में हुई यह दुर्घटना, स्टालिवादी पार्टियों और ट्रेड यूनियनों की समर्थित केंद्रीय और राज्य की सरकारों द्वारा दशकों से क़ानून को ढीला करने और निजीकरण को बढ़ावा देने का नतीजा है।
पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच एक हफ़्ते से भी ज़्यादा समय तक हुई झड़पों में सैकड़ों लोग मारे गए, लेकिन इसके बाद क़तर और तुर्की की मध्यस्थता में दोनों देश एक ऐसे संघर्ष विराम पर सहमत हुए जो बहुत नाज़ुक है.
10 अक्टूबर को गोला बारूद वाले प्लांट एक्युरेट एनर्जेटिक सिस्टम्स (एईएस) में विस्फोट हुआ और इससे 8,200 मील दूर बांग्लादेश में 14 अक्टूबर को एक गार्मेंट फ़ैक्ट्री में आग लगी, लेकिन दोनों दुर्घटनाओं का मूल कारण एक हैः मानवीय ज़िंदगियों पर कारपोरेट मुनाफ़े को प्राथमिकता देना।
स्टालिनवादी सीटू फ़ेडरेशन के साथ काम करने वाली मद्रास रबर फ़ैक्ट्री (एमआरएफ़) की कर्मचारी यूनियन (एमईयू) ने एमआरएफ़ प्लांट में अनिश्चितकालीन हड़ताल के साथ धोखा किया।
पर्यावरणीय रूप से विवादित प्रोजेक्ट को टालने के अपने चुनावी वायदे से पीछे हटने के बाद दिसानायके सरकार ने मन्नार के लोगों पर हमला बोला है।
फ़िल्म स्टार से राजनेता बने विजय और उनकी नई नवेटी पार्टी टीवीके भयंकर ग़रीबी और बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ गुस्से को भुनाने के लिए लोकलुभावन वायदे करके लोगों को आकर्षित करती है लेकिन अपने समर्थकों के प्रति उनके आपराधिक लापरवाही भरे व्यवहार ने उनकी प्रतिक्रियावादी राजनीति के वर्ग चरित्र को दुखद रूप से उजागर कर दिया है।
भारत की सबसे बड़ी आईटी कंपनी टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) ने 12,000 नौकरियां ख़त्म करने के साथ ही अपने इतिहास की सबसे बड़ी छंटनी को शुरू कर दिया है।
हालांकि शुरुआती गुस्सा, पिछले हफ़्ते 26 सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्मों पर लगाए गए सरकारी बैन से पैदा हुआ था, लेकिन ये प्रदर्शन असल में अवसरों की कमी, भ्रष्टाचार और अमीर व ग़रीब के बीच बढ़ती सामाजिक खाई को लेकर व्यापक हताशा को प्रतिबिम्बित करते हैं।
हालांकि 10 मई को भारत और पाकिस्तान के बीच एक कमज़ोर संघर्षविराम हो गया, लेकिन भारत सिंधु जल समझौते को निलंबित करना जारी रखा है और नई दिल्ली अब खम ठोंक रही है कि वह इस समझौते के मौजूदा स्वरूप पर वह अब कभी नहीं लौटेगी।

न्यूयॉर्क में ममदानी की जीत में राजनीतिक और वर्गीय मुद्दे
ममदानी के चुनाव प्रचार अभियान के लिए समर्थन, मज़दूरों और युवाओं के बीच एक वामपंथी झुकाव को दिखाता है, लेकिन ममदानी का प्रोग्राम, कुलीनतंत्र और तानाशाही के ख़िलाफ़ लड़ाई में आगे बढ़ने का कोई रास्ता नहीं सुझाता।
भारत पाकिस्तान संघर्ष से परमाणु विनाश का ख़तरा
भारत और पाकिस्तान, दक्षिण एशिया के दो प्रतिद्वंद्वी परमाणु हथियार संपन्न शक्ति हैं और एक दूसरे के ख़िलाफ़ पूर्ण युद्ध की कगार पर हैं। अगर ऐसा संघर्ष होता है तो यह बहुत ही विनाशकारी होने वाला है, केवल इस क्षेत्र के दो अरब लोगों के लिए ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए।
ट्रंप प्रशासन का एक महीनाः कुलीन तंत्र बनाम मज़दूर वर्ग
पिछले चार हफ़्तों की परिघटनाओं ने साबित किया है कि ट्रंप की वापसी, असल में अमेरिकी समाज के कुलीन तंत्र वाले चरित्र के साथ कदमताल करने के लिए राजनीतिक अधिरचना में जबरिया फेरबदल का प्रतिनिधित्व करती है।
युद्ध फ़ासीवाद और कुलीनतंत्र के ख़िलाफ़ समाजवाद
पूंजीवादी व्यवस्था के अंतरसंबंधित संकट के पीछे एक कुलीनतंत्र है, जो पूरे समाज को अपने लाभ और निजी दौलत इकट्ठा करने के लिए अपना ग़ुलाम बना लेता है। इस कुलीनतंत्र के ख़िलाफ़ संघर्ष, अपनी प्रकृति में ही एक क्रांतिकारी कार्यभार है।
